Tuesday, October 23, 2012
नवरात्र का नवां दिन माँ सिद्धिदात्री
जय माता दी ,आज शरद नवरात्र का नवां और आखरी दिन है .आज माँ सिद्धिदात्री की पूजा हो रही है .
छूटे न अधुरा संकल्प कोई, पूर्णता हर कार्य को दे पाऊं
खरी उतरूँ आशाओं की कसौटी पे, सिधिदात्री ऐसा वर दो
माँ भगवती दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम स
सिद्धिदात्री हैं, माँ सिद्धिदात्री हर प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं| देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं| मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिध्दियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिध्दीदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र,ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं| माँ भगवती ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं. देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं
Monday, October 22, 2012
आदिशक्ति के छठा रूप मां कात्यायनी
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और आदिशक्ति ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया तबसे उनका नाम कात्यायनी विख्यात हुआ।
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना करने से अद्भुत शक्ति का संचार होता है और दुश्मनों का संहार करने के लिए मां आपकी रक्षा करती हैं।
आदिशक्ति के अष्टम रूप मां महागौरी
जय माता दी, आज नवरात्री का आठवां दिन हैं और रात से ही आदिशक्ति के अष्टम रूप मां महागौरी की पूजा-अर्चना और उपासना हो रही है .
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम
महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।
महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी प्रतिज्ञा थी कि 'व्रियेऽहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात्।' (नारद पांचरात्र)। गोस्वामी तुलसीदासजी के अनुसार भी इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था-
जन्म कोटि लगि रगर हमारी।
बरऊँ संभु न त रहऊँ कुँआरी॥
इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।
महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।
पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।
महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी प्रतिज्ञा थी कि 'व्रियेऽहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात्।' (नारद पांचरात्र)। गोस्वामी तुलसीदासजी के अनुसार भी इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था-
जन्म कोटि लगि रगर हमारी।
बरऊँ संभु न त रहऊँ कुँआरी॥
इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।
महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।
पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
आदिशक्ति के सप्तम रूप मां कालरात्रि
जय माता दी, आज नवरात्री का सातवां दिन हैं और सुबह से ही आदिशक्ति के सप्तम रूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना और उपासना हो रही है .
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि।
काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं।
ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है।
इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि।
काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं।
ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है।
इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
आदिशक्ति के पांचवे रूप मां स्कंदमाता
आज नवरात्री का पांचवा दिन हैं और सुबह से ही आदिशक्ति के पांचवे रूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना और उपासना हो रही है .
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचवीं दुर्गा स्कन्दमाता के रूप में पूजा जाता है। नवरात्र में इनकी पूजा-अर्चना का विशेष विधान है। देवी भगवती का यह स्वरूप देवताओं की सेना के मुखिया स्कन्द कुमार (कार्तिकेय) की माता का स्वरूप है, इसलिए उन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है।कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है।
इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।
इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।
अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं।
कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता।
Friday, October 19, 2012
आदिशक्ति के चौथे रूप मां कुशमांडा
जय माता दी ,
आज नवरात्री का चौथा दिन हैं और सुबह से ही आदिशक्ति के चौथे रूप मां कुशमांडा की पूजा-अर्चना और उपासना हो रही है .
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है।
इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। ळळ
जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नाति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।
जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नाति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।
Thursday, October 18, 2012
Word Meanings (VOCABULARY)
Word of the Day 31.10.2012
Farcical - फार्सकल / फार्सिकल - हास्यास्पद
The formerly secret documents revealed CIA's farcical plan to discredit Fidel Castro by sprinkling his shoes with a powder that was supposed to make his beard fall out.
पूर्व में गुप्त दस्तावेजों से सीआईए की फिदेल कास्त्रो का अपमान करने की एक हास्यास्पद योजना का पता चला जिसमें उनके जूतों पर दाढ़ी गिराने के एक पाउडर का छिड़काव किया जाना था।
Word of the Day 25.10.2012
Palatial - पलेशल / पलैशल- भव्य
In the forecourt of a most palatial hotel, the birthday girl was waiting.
अपने जन्मदिन पर वह लड़की एक अत्यंत भव्य होटल के प्रांगण में प्रतीक्षा कर रही थी.
Word of the Day 23.10.2012
Dormant - डॉर्मन्ट - सुप्त
The volcano erupted violently and then fell dormant for several hundred years.
ज्वालामुखी प्रचंड रूप से फटा और फिर कई शतकों तक सुप्त अवस्था में चला गया।
Word of the Day 22.10.2012
Deduce - डिडूस - अनुमान लगाना
From the footprints on the ground, the detective deduced that the criminal had six toes.
मिट्टी में पदचिन्हों को देख कर जासूस ने अनुमान लगाया कि अपराधी के पैर में छह उंगलियां थी।
Word of the Day 19.10.2012
Chagrin- (शग्रिन) - शरमिंदगी
To my chagrin, I began to
giggle at the funeral of a senior colleague.
एक वरिष्ठ सहकर्मी की शोकसभा में मुझे हंसी आने लगी जो मेरे लिए बड़ी शरमिंदगी की बात थी।
The duplicitous salesman sold the sculpture to someone else even though he had promised to sell it to us.
धोखेबाज़ बिक्रीकर्ता ने प्रतिमा हमें बेचने का वायदा करने के बावजूद उसे किसी और को बेच दी।
The grades given by the teacher appeared to be arbitrary; they did not seem to be related to anything the students had done in the class.
शिक्षक द्वारा दिए गए ग्रेड मनमाने ढंग से दिए गए हों ऐसा लगा; छात्रों ने कक्षा में जो कुछ भी किया था उससे उनका कोई संबंध नहीं लग रहा था।
Exonerate - निर्दोषी करार देना
The suspect was exonerated when fingerprints of somebody else were found on the murder weapon.
जब हत्या के हथियार पर किसी और की अंगुलियों के निशान मिले तब संदिग्ध व्यक्ति को निर्दोषी करार दिया गया।
The suspect was exonerated when fingerprints of somebody else were found on the murder weapon.
जब हत्या के हथियार पर किसी और की अंगुलियों के निशान मिले तब संदिग्ध व्यक्ति को निर्दोषी करार दिया गया।
मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा
नवरात्र पर्व के तीसरे दिन आज माँ चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जा रही है।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।
इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं।
सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस काँपते रहते हैं। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए।
इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। यह देवी कल्याणकारी है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं।
नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है।
Wednesday, October 17, 2012
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्व जन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
मां दुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री
मांदुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं।
इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया।
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
Maa Vaishno Devi
Tuesday, October 16, 2012
Weight of Human Body Organs
- Skin 10886 grams approx.
Human Skin is made up of different ectodermal tissues and it protects all the inner body organs like liver, glands, stomach, heart etc. It is the largest or biggest human body organ.
- Liver 1560 grams approx.
The liver receive blood full of digested for from the gut. It stores some foods and delivers the rest to the other cells through blood.
- Brain 1263 grams approx.
There are about 100 billion cells in human brain which make about 100 trillion nerve connections with nerve cells for messaging. Medulla oblongata, Midbrain, Hind Brain, Cerebellum, Spinal Cord and Venticle are some of the major parts of a human brain.
- Lungs 1090 grams approx.
The function of lungs is to inhale oxygen and exhale carbon dioxide out of the red blood cells. It can hold a total upto 5 litres of air and its internal area according to adult lungs over 90 meters which is half of the area of a tennis court.
- Heart Male 315 grams approx.
- Heart Female 265 grams approx.
It's main work is to pump the blood to every part of the body to deliver the energy to every body cell. Ventricles, atrium and aorta are some of the main parts of a human heart.
- Kidneys 290 grams approx.
Kidney's main function is to separate the waste material by filtering the blood. both these kidneys filter our blood 50 times a day. If, one kidney stops working the other will enlarge and do the work of two.
- Spleen 170 grams
It forms the red blood cells pulp and white blood cells pulp. Therefore, it is helpful in making the blood and increasing the immunity of the human being.
- Pancreas 98 grams
It is most important gland which produces several hormones including insulin, glucagon and somatostatin. The pancreas is a dual -function gland having features of both endocrine and exocrine glands.
- Thyroid 35 grams
It is the larges gland in the human body. The function of this gland is to produce thyroxine and triiodothyronine hormones.
- Prostate 20 grams
It is also a gland.
Monday, October 15, 2012
List of Nobel Prize Winner 2012
- Physics 2012 was awarded jointly to Serge Haroche and David J. Wineland "for ground-breaking experimental methods that enable measuring and manipulation of individual quantum systems"
- Chemistry 2012 was awarded jointly to Robert J. Lefkowitz and Brian K. Kobilka "for studies of G-protein-coupled receptors"
- Physiology or Medicine 2012 was awarded jointly to Sir John B. Gurdon and Shinya Yamanaka "for the discovery that mature cells can be reprogrammed to become pluripotent"
- Literature 2012 was awarded to Mo Yan "who with hallucinatory realism merges folk tales, history and the contemporary".
- Peace Prize 2012 was awarded to European Union (EU) "for over six decades contributed to the advancement of peace and reconciliation, democracy and human rights in Europe".
- Economic Sciences was awarded jointly to Alvin E. Roth and Lloyd S. Shapley "for the theory of stable allocations and the practice of market design"
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी
भारत
के
राष्ट्रपति
कार्यभार ग्रहण: 25 जुलाई
2012
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह
उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद
अंसारी
पूर्व अधिकारी प्रतिभा
पाटिल
भारत
के
वित्त
मंत्री
कार्यकाल 24 जनवरी 2009 – 26 जून 2012
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह
पूर्व अधिकारी मनमोहन
सिंह
उत्तराधिकारी मनमोहन सिंह
भारत
के
विदेश
मंत्री
कार्यकाल 10 फरबरी 1995 – 16 मई 1996
प्रधान मंत्री पी.वी.
नरसिम्हा राव
पूर्व अधिकारी दिनेश
सिंह
उत्तराधिकारी सिकन्दर बख्त
भारत
के
रक्षा
मंत्री
कार्यकाल 22 मई 2004 – 26 अक्तूबर 2006
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह
पूर्व अधिकारी ज्योर्ज
फ़र्नान्डिस
उत्तराधिकारी ए. के.
एंटोनी
भारतीय
योजना
आयोग
के
उपाध्यक्ष
कार्यकाल 24 जून 1991 – 15 मई 1996
प्रधान मंत्री पी.वी.
नरसिम्हा राव
पूर्व अधिकारी मोहन
धारिया
उत्तराधिकारी मधु दण्डवते
जन्म 11 दिसंबर दिसंबर 1935 (आयु
76)
ग्राम मिराती, बीरभूम जिला,
ब्रिटिश भारत
राजनैतिक पार्टी भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस (1986 से पूर्व;
1989 से अबतक)
राष्ट्रीय समाजवादी काँग्रेस (1986 से
1989 तक)
अन्य राजनैतिक
सहबद्धताएं संयुक्त
मोर्चा (1996 से 2004 तक)
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (2004 से
अब तक)
जीवन संगी शुभ्रा मुखर्जी (1957 से अब
तक)
संतान शर्मिष्ठा, अभिजीत,
इन्द्रजीत
विद्या अर्जन कलकत्ता विश्वविद्यालय
धर्म हिन्दू
सम्मान पद्म
विभूषण (2008)
प्रणव
कुमार मुखर्जी (बांग्ला:
প্রণব কুমার মুখোপাধ্যায়, जन्म:
11 दिसम्बर 1935, पश्चिम बंगाल) वर्तमान
में भारत के
राष्ट्रपति हैं। वे
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के
वरिष्ठ नेता हैं।
नेहरू-गान्धी परिवार
से उनके करीबी
सम्बन्ध रहे हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के
नेतृत्व वाले संयुक्त
प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें
अपना उम्मीदवार घोषित
किया। सीधे मुकाबले
में उन्होंने अपने
प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए.
संगमा को हराया।
उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत
के तेरहवें राष्ट्रपति
के रूप में
पद और गोपनीयता
की शपथ ली।
प्रारम्भिक जीवन:
प्रणव मुखर्जी का जन्म
पश्चिम बंगाल के वीरभूम
जिले में किरनाहर
शहर के निकट
स्थित मिराती गाँव
के एक ब्राह्मण
परिवार में कामदा
किंकर मुखर्जी और
राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहाँ
हुआ था।
उनके
पिता 1920 से कांग्रेस
पार्टी में सक्रिय
होने के साथ
पश्चिम बंगाल विधान परिषद
में 1952 से 64 तक सदस्य
और वीरभूम (पश्चिम
बंगाल) जिला कांग्रेस
कमेटी के अध्यक्ष
रह चुके थे।[1]
उनके पिता एक
सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे,
जिन्होंने ब्रिटिश शासन की
खिलाफत के परिणामस्वरूप
10 वर्षो से अधिक
जेल की सजा
भी काटी थी।
प्रणव
मुखर्जी ने सूरी
(वीरभूम) के सूरी
विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा
पाई, जो उस
समय कलकत्ता विश्वविद्यालय
से सम्बद्ध था।
कैरियर: कलकत्ता विश्वविद्यालय से
उन्होंने इतिहास और राजनीति
विज्ञान में स्नातकोत्तर
के साथ साथ
कानून की डिग्री
हासिल की है।
वे एक वकील
और कॉलेज प्राध्यापक
भी रह चुके
हैं। उन्हें मानद
डी.लिट उपाधि
भी प्राप्त है।
उन्होंने पहले एक
कॉलेज प्राध्यापक के
रूप में और
बाद में एक
पत्रकार के रूप
में अपना कैरियर
शुरू किया। वे
बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर
डाक (मातृभूमि की
पुकार) में भी
काम कर चुके
हैं। प्रणव मुखर्जी
बंगीय साहित्य परिषद
के ट्रस्टी एवं
अखिल भारत बंग
साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष
भी रहे।[2]
राजनीतिक कैरियर:
उनका संसदीय कैरियर करीब
पाँच दशक पुराना
है, जो 1969 में
कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा
सदस्य के रूप
में (उच्च सदन)
से शुरू हुआ
था। वे 1975, 1981, 1993 और
1999 में फिर से
चुने गये। 1973 में
वे औद्योगिक विकास
विभाग के केंद्रीय
उप मन्त्री के
रूप में मन्त्रिमण्डल
में शामिल हुए।
वे
सन 1982 से 1984 तक कई
कैबिनेट पदों के
लिए चुने जाते
रहे और और
सन् 1984 में भारत
के वित्त मंत्री
बने। सन 1984 में,
यूरोमनी पत्रिका के एक
सर्वेक्षण में उनका
विश्व के सबसे
अच्छे वित्त मंत्री
के रूप में
मूल्यांकन किया गया।[3]
उनका कार्यकाल भारत
के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा
कोष (आईएमएफ) के
ऋण की 1.1 अरब
अमरीकी डॉलर की
आखिरी किस्त नहीं
अदा कर पाने
के लिए उल्लेखनीय
रहा। वित्त मंत्री
के रूप में
प्रणव के कार्यकाल
के दौरान डॉ.
मनमोहन सिंह भारतीय
रिजर्व बैंक के
गवर्नर थे। वे
इंदिरा गांधी की हत्या
के बाद हुए
लोकसभा चुनाव के बाद
राजीव गांधी की
समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र
के शिकार हुए
जिसने इन्हें मन्त्रिमणडल
में शामिल नहीं
होने दिया। कुछ
समय के लिए
उन्हें कांग्रेस पार्टी से
निकाल दिया गया।
उस दौरान उन्होंने
अपने राजनीतिक दल
राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का
गठन किया, लेकिन
सन 1989 में राजीव
गान्धी के साथ
समझौता होने के
बाद उन्होंने अपने
दल का कांग्रेस
पार्टी में विलय
कर दिया।[4] उनका
राजनीतिक कैरियर उस समय
पुनर्जीवित हो उठा,
जब पी.वी.
नरसिंह राव ने
पहले उन्हें योजना
आयोग के उपाध्यक्ष
के रूप में
और बाद में
एक केन्द्रीय कैबिनेट
मन्त्री के तौर
पर नियुक्त करने
का फैसला किया।
उन्होंने राव के
मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक
पहली बार विदेश
मन्त्री के रूप
में कार्य किया।
1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद
चुना गया।
सन
1985 के बाद से
वह कांग्रेस की
पश्चिम बंगाल राज्य इकाई
के भी अध्यक्ष
हैं। सन 2004 में,
जब कांग्रेस ने
गठबन्धन सरकार के अगुआ
के रूप में
सरकार बनायी, तो
कांग्रेस के प्रधानमन्त्री
मनमोहन सिंह सिर्फ
एक राज्यसभा सांसद
थे। इसलिए जंगीपुर
(लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से
पहली बार लोकसभा
चुनाव जीतने वाले
प्रणव मुखर्जी को
लोकसभा में सदन
का नेता बनाया
गया। उन्हें रक्षा,
वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय,
राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार,
आर्थिक मामले, वाणिज्य और
उद्योग, समेत विभिन्न
महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री
होने का गौरव
भी हासिल है।
वह कांग्रेस संसदीय
दल और कांग्रेस
विधायक दल के
नेता रह चुके
हैं, जिसमें देश
के सभी कांग्रेस
सांसद और विधायक
शामिल होते हैं।
इसके अतिरिक्त वे
लोकसभा में सदन
के नेता, बंगाल
प्रदेश कांग्रेस पार्टी के
अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व
वाली सरकार के
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की
मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय
वित्त मन्त्री भी
रहे। लोकसभा चुनावों
से पहले जब
प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने
अपनी बाई-पास
सर्जरी कराई, प्रणव दा
विदेश मन्त्रालय में
केन्द्रीय मंत्री होने के
बावजूद राजनैतिक मामलों की
कैबिनेट समिति के अध्यक्ष
और वित्त मन्त्रालय
में केन्द्रीय मन्त्री
का अतिरिक्त प्रभार
लेकर मन्त्रिमण्डल के
संचालन में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते रहे।
अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका:
10 अक्तूबर 2008 को मुखर्जी
और अमेरिकी विदेश
सचिव कोंडोलीजा राइस
ने धारा 123 समझौते
पर हस्ताक्षर किए।
वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा
कोष के विश्व
बैंक, एशियाई विकास
बैंक और अफ्रीकी
विकास बैंक के
प्रशासक बोर्ड के सदस्य
भी हैं।
सन
1984 में उन्होंने आईएमएफ और
विश्व बैंक से
जुड़े ग्रुप-24 की
बैठक की अध्यक्षता
की। मई और
नवम्बर 1995 के बीच
उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन
की अध्यक्षता की।[5]
राजनीतिक दल
में
भूमिका:
मुखर्जी को पार्टी
के भीतर तो
मिला ही, सामाजिक
नीतियों के क्षेत्र
में भी काफी
सम्मान मिला है।[6]
अन्य प्रचार माध्यमों
में उन्हें बेजोड़
स्मरणशक्ति वाला, आंकड़ाप्रेमी और
अपना अस्तित्व बरकरार
रखने की अचूक
इच्छाशक्ति रखने वाले
एक राजनेता के
रूप में वर्णित
किया जाता है।[7]
जब
सोनिया गान्धी अनिच्छा के
साथ राजनीति में
शामिल होने के
लिए राजी हुईं
तब प्रणव उनके
प्रमुख परामर्शदाताओं में से
रहे, जिन्होंने कठिन
परिस्थितियों में उन्हें
उदाहरणों के जरिये
बताया कि उनकी
सास इंदिरा गांधी
इस तरह के
हालात से कैसे
निपटती थीं।[8] मुखर्जी की
अमोघ निष्ठा और
योग्यता ने ही
उन्हें यूपीए चेयरपर्सन सोनिया
गांधी और प्रधान
मन्त्री मनमोहन सिंह के
करीब लाया और
इसी वजह से
जब 2004 में कांग्रेस
पार्टी सत्ता में आयी
तो उन्हें भारत
के रक्षा मंत्री
के प्रतिष्ठित पद
पर पहुँचने में
मदद मिली।
सन
1991 से 1996 तक वे
योजना आयोग के
उपाध्यक्ष पद पर
आसीन रहे।
2005 के प्रारम्भ
में पेटेण्ट संशोधन
बिल पर समझौते
के दौरान उनकी
प्रतिभा के दर्शन
हुए। कांग्रेस एक
आईपी विधेयक पारित
करने के लिए
प्रतिबद्ध थी, लेकिन
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में
शामिल वाममोर्चे के
कुछ घटक दल
बौद्धिक सम्पदा के एकाधिकार
के कुछ पहलुओं
का परम्परागत रूप
से विरोध कर
रहे थे। रक्षा
मन्त्री के रूप
में प्रणव मामले
में औपचारिक रूप
से शामिल नहीं
थे, लेकिन बातचीत
के कौशल को
देखकर उन्हें आमन्त्रित
किया गया था।
उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिष्ट नेता
ज्योति बसु सहित
कई पुराने गठबन्धनों
को मनाकर मध्यस्थता
के कुछ नये
बिंदु तय किये,
जिसमे उत्पाद पेटेण्ट
के अलावा और
कुछ और बातें
भी शामिल थीं;
तब उन्हें, वाणिज्य
मन्त्री कमल नाथ
सहित अपने सहयोगियों
यह कहकर मनाना
पड़ा कि: "कोई
कानून नहीं रहने
से बेहतर है
एक अपूर्ण कानून
बनना।"[9] अंत में
23 मार्च 2005 को बिल
को मंजूरी दे
दी गई।
भ्रष्टाचार पर
विचार:
मुखर्जी की खुद
की छवि पाक-साफ है,
परन्तु सन् 1998 में रीडिफ.कॉम को
दिये गये एक
साक्षात्कार में उनसे
जब कांग्रेस सरकार,
जिसमें वह विदेश
मंत्री थे, पर
लगे भ्रष्टाचार के
बारे में पूछा
गया था तो
उन्होंने कहा -
"भ्रष्टाचार एक
मुद्दा है। घोषणा
पत्र में हमने
इससे निपटने की
बात कही है।
लेकिन मैं यह
कहते हुए क्षमा
चाहता हूँ कि
ये घोटाले केवल
कांग्रेस या कांग्रेस
सरकार तक ही
सीमित नहीं हैं।
बहुत सारे घोटाले
हैं। विभिन्न राजनीतिक
दलों के कई
नेता उनमें शामिल
हैं। तो यह
कहना काफी सरल
है कि कांग्रेस
सरकार भी इन
घोटालों में शामिल
थी।"[10]
विदेश मन्त्री
: अक्टूबर
2006
2008 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज
डब्ल्यू. बुश के
साथ प्रणव मुखर्जी.
24 अक्टूबर
2006 को जब उन्हें
भारत का विदेश
मन्त्री नियुक्त किया गया,
रक्षा मंत्रालय में
उनकी जगह ए.के. एंटनी
ने ली।
प्रणव मुखर्जी के नाम
पर एक बार
भारतीय राष्ट्रपति जैसे सम्मानजनक
पद के लिए
भी विचार किया
गया था. लेकिन
केंद्रीय मंत्रिमण्डल में व्यावहारिक
रूप से उनके
अपरिहार्य योगदान को देखते
हुए उनका नाम
हटा लिया गया।
मुखर्जी की वर्तमान
विरासत में अमेरिकी
सरकार के साथ
असैनिक परमाणु समझौते पर
भारत-अमेरिका के
सफलतापूर्वक हस्ताक्षर और परमाणु
अप्रसार सन्धि पर दस्तखत
नहीं होने के
बावजूद असैन्य परमाणु व्यापार
में भाग लेने
के लिए परमाणु
आपूर्तिकर्ता समूह के
साथ हुए हस्ताक्षर
भी शामिल हैं।
सन 2007 में उन्हें
भारत के दूसरे
सबसे बड़े नागरिक
सम्मान पद्म विभूषण
से नवाजा गया।
वित्त मन्त्री: मनमोहन सिंह की
दूसरी सरकार में
मुखर्जी भारत के
वित्त मन्त्री बने।
इस पद पर
वे पहले 1980 के
दशक में भी
काम कर चुके
थे। 6 जुलाई, 2009 को
उन्होंने सरकार का वार्षिक
बजट पेश किया।
इस बजट में
उन्होंने क्षुब्ध करने वाले
फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और
कमोडिटीज ट्रांसक्शन कर को
हटाने सहित कई
तरह के कर
सुधारों की घोषणा
की। उन्होंने ऐलान
किया कि वित्त
मन्त्रालय की हालत
इतनी अच्छी नहीं
है कि माल
और सेवा कर
लागू किये बगैर
काम चला सके।
उनके इस तर्क
को कई महत्वपूर्ण
कॉरपोरेट अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों
ने सराहा। प्रणव
ने राष्ट्रीय ग्रामीण
रोजगार गारण्टी अधिनियम, लड़कियों
की साक्षरता और
स्वास्थ्य जैसी सामाजिक
क्षेत्र की योजनाओं
के लिए समुचित
धन का प्रावधान
किया। इसके अलावा
उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास
कार्यक्रम, बिजलीकरण का विस्तार
और जवाहरलाल नेहरू
राष्ट्रीय शहरी नवीकरण
मिशन सरीखी बुनियादी
सुविधाओं वाले कार्यक्रमों
का भी विस्तार
किया। हालांकि, कई
लोगों ने 1991 के
बाद लगातार बढ़
रहे राजकोषीय घाटे
के बारे में
चिन्ता व्यक्त की, परन्तु
मुखर्जी ने कहा
कि सरकारी खर्च
में विस्तार केवल
अस्थायी है और
सरकार वित्तीय दूरदर्शिता
के सिद्धान्त के
प्रति पूरी तरह
प्रतिबद्ध है।
निजी जीवन: बंगाल (भारत) में
वीरभूम जिले के
मिराती (किर्नाहार) गाँव में
11 दिसम्बर 1935 को कामदा
किंकर मुखर्जी और
राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर
जन्मे प्रणव का
विवाह बाइस वर्ष
की आयु में
13 जुलाई 1957 को शुभ्रा
मुखर्जी के साथ
हुआ था। उनके
दो बेटे और
एक बेटी - कुल
तीन बच्चे हैं।
पढ़ना, बागवानी करना और
संगीत सुनना- तीन
ही उनके व्यक्तिगत
शौक भी हैं।
सम्मान और विशिष्टता
1.
न्यूयॉर्क
से प्रकाशित पत्रिका,
यूरोमनी के एक
सर्वेक्षण के अनुसार,
वर्ष 1984 में दुनिया
के पाँच सर्वोत्तम
वित्त मन्त्रियों में
से एक प्रणव
मुखर्जी भी थे।
2.
उन्हें
सन् 1997 में सर्वश्रेष्ठ
सांसद का अवार्ड
मिला।
3.
वित्त
मन्त्रालय और अन्य
आर्थिक मन्त्रालयों में राष्ट्रीय
और आन्तरिक रूप
से उनके नेतृत्व
का लोहा माना
गया। वह लम्बे
समय के लिए
देश की आर्थिक
नीतियों को बनाने
में महत्वपूर्ण व्यक्ति
के रूप में
जाने जाते हैं।
उनके नेत़त्व में
ही भारत ने
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के
ऋण की 1.1 अरब
अमेरिकी डॉलर की
अन्तिम किस्त नहीं लेने
का गौरव अर्जित
किया। उन्हें प्रथम
दर्जे का मन्त्री
माना जाता है
और सन 1980-1985 के
दौरान प्रधानमन्त्री की
अनुपस्थिति में उन्होंने
केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की बैठकों
की अध्यक्षता की।
4.
उन्हें
सन् 2008 के दौरान
सार्वजनिक मामलों में उनके
योगदान के लिए
भारत के दूसरे
सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म
विभूषण से नवाजा
गया।
Subscribe to:
Comments (Atom)








